Friday, May 20, 2011

आपने ही मन से कुछ बोले

क्या खोया क्या पाया जग में
मिलते और बिछड़ते पग में
मुझे किसी दे नहीं शिकायत
यधपि छला गया पग पग में
एक द्रष्टि बीती पर डाले
यादों की पोटली टटोले
आपने ही मन से कुछ बोले

पृथ्वी लाखों वर्ष पूरानी
जीवन एक अनंत कहानी
पर तन की अपनी सीमाएं
तदपि सौ शरदों की वाणी
इतना काफी है अंतिम दस्तक
पर खुद दरवाजा खोले

जन्म-मरण का अविरत फेरा
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ कल कहाँ कुछ है
कौन जानता किधर सवेरा
अँधियारा आकाश असीमीत
प्राणों के पंखों को तुले
अपने ही मन में कुछ बोले

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