छोटी-छोटी छितराई यादें बिछी हुई हैं लम्हों की लॉन पर.
नंगे पैर उनपर चलते-चलते इतनी दूर चले आये
की अब भूल गए हैं – जूते कहाँ उतारे थे.
एडी कोमल थी, जब आये थे थोड़ी सी नाज़ुक है अभी भी .
और नाज़ुक ही रहेगी इन खट्टी -मीठी यादों की शरारत
जब तक इन्हें गुदगुदाती रहे .
सच , भूल गए हैं की जूते कहाँ उतारे थे .
पर लगता है ,अब उनकी ज़रुरत नहीं
नंगे पैर उनपर चलते-चलते इतनी दूर चले आये
की अब भूल गए हैं – जूते कहाँ उतारे थे.
एडी कोमल थी, जब आये थे थोड़ी सी नाज़ुक है अभी भी .
और नाज़ुक ही रहेगी इन खट्टी -मीठी यादों की शरारत
जब तक इन्हें गुदगुदाती रहे .
सच , भूल गए हैं की जूते कहाँ उतारे थे .
पर लगता है ,अब उनकी ज़रुरत नहीं
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